बुढापे की पीड़ा लेखनी प्रतियोगिता -18-Nov-2023
बुढ़ापे की पीड़ा
जतिन अपनी दुकान पर उस शराबी के खरीदे सामान के दाम को अपने कैलकुलेटर पर जोड़ ही रहा था कि उसने लड़खड़ाते जुबान से कहा," बेटा,आठ सौ पैतीस।"
जतिन को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ।
वह ब्यक्ति आधे होश में था और उसके लिए हुए छोटे मोटे सामान की संख्या लगभग पंद्रह थी उसके लिस्ट के आगे जतिन ने खुद से दाम जरूर जोड़ रखे थे वह कैलक्यूलेटर से जोड़कर चैक कर रहा था।
लेकिन उस ब्यक्ति ने सिर्फ दो मिनट में ही न जाने कैसे बिना केल्कुलेटर के अपने दिमाग मे सब संख्या जोड़कर उसे बता दिया जबकि वह बहुत नशे में था । वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पारहा था।
जतिन को विश्वास ही नहीं हुआ और उसे हँसी आ गई । जतिन ने एकबार फिर से दाम जोड़ कर देखे तो आठ सौ पैंतीस ही निकले।
वह इस आश्चर्य से निकलता कि एक लगभग तीस साल की बेहद आधुनिक लड़की आई और उस फटेहाल और बेतरतीब शराबी को गौर से देखने लगी ।
इस बात से जतिन का आश्चर्य और बढ़ गया।
वह शराबी बिना उसकी तरफ देखे बढ़ने ही वाला था कि उस लड़की ने पूछा," आप!आप मैथ्स वाले राकेश सक्सैना सर हैं ना इन्दौर वाले?"
" हाँ.. मगर तुम कौन हो? और मुझसे यह क्यौ पूछ रही हो?"
उस लड़की ने झुक कर उस शराबी के पैर छू लिए।
"मैं सारिका हूँ सर..वहीं आपके पास में रहती थी और आपसे ट्यूशन पढ़ा करती थी। आपने मेरी ज़िंदगी बदल दी?लेकिन आपने खुद का ये क्या हाल बना रखा है सर.. कितने दुबले हो गए हैं आप?पहचान में ही नहीं आ रहे है? आप इस शहर में कैसे ?"
वह अब उससे नज़रे चुरा रहा था और हाथों में लिए शराब की बोतल भी छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था।
वह बिना कुछ बोले जाने लगा।
लेकिन लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया। ओर बोली," और नील कहाँ है?"
उस शराबी की आँखों में आँसू उतर आए और बोला," नील मैं उसका नाम भी अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहता हूँ। उसने मेरा बुढापा खराब कर दिया। उसने धोके से मेरा बैंक अकाउंट खाली कर दिया और मेरा मकान गिरवी रखकर विदेश भाग गया। इसी गम में मेरी पूजा बीमार होगई जो बचा था मैने पूजा के इलाज में लगा दिया लेकिन वह भी भगवान के पास चली गई। और मै इस' हालत में पहुँच गया शर्म से इन्दौर से यहाँ चला आया।"
नशे से हुई उन लाल आँखों मे जतिन को एक पिता और एक पति का दर्द बहता नज़र आया ।लड़की ने उसे वही उसकी दुकान के आगे रखे बेंच पर बिठा लिया।
और वह बोली, "आपको इस हाल में देख क्या पूजा आन्टी खुश होंगी सर... कभी नहीं? क्या मैं आपकी बेटी जैसी नही हूँ मेरे साथ मेरे घर चलो।"
उसणशराबी ने उस लड़की का हाथ झटक दिया और बोला,""नहीं.. इस दुनिया में अब मेरा कोई अपना नही है जब अपना बेटा ही धोका देकर भाग गया तब---------?
और शराब के बॉटल का ढक्कन खोलने लगा इससे पहले कि जतिन उसे अपनी दुकान के सामने पीने से रोकता वह लड़की बोली," मैंजा रही हूँ सर! परन्तु आप अपनी प्रतिभा का गला घौटकर बहुत गलत कर रहे हो । नील आपकी प्रतिभा लेकर नहीं गया है , आप चाहो तो आज इस नये शहर में भी अपना नाम स्वर्ण अक्षरौ में लिख सकते हो? आपसे पढ़े हुए छात्र आपका नाम देखकर कितने खुश होंगें इसका अंदाज आपको नहीं है।"
"नहीं बेटी अब इस बूढे के लिए इतना कौन करेगा ?"
"सर आप मुझे बेटी कहरहे हो तब यह सब मुझ पर छोड़कर मेरे साथ चलो।"
अब उन्होने शराब की बोतल ढक्कन खोलकर वहीं जमीन पर खाली करदी। और वह सारिका के साथ उसके घर की तरफ चलते हुए बोले, " सारिका तुम मेरे लिए बेटी जैसी नहीं मेरी बेटी ही हो।"
सारिका ने उनके लिए कोचिंग क्लास का प्रवन्ध किया । कुछ ही समय में वास्तव में उनका नाम हर छात्र की जवान पर छागया।
*दोस्तों*
जिदंगी मे कभी कभी हमें ऐसे लोगों से भी हमदर्दी करनी चाहिए, मदद करनी चाहिए जोकि वक्त की मार के मारे है । अपने ही लोगौ के द्वारा ठुकराए गये हों।
"दोस्तों"
इन्हें बस एक साथ की जरूरत होती है वो जादुई शब्द की जो छाती ठोकर कह सके कि
"मै हूं ना"।
दोस्तों ये वो जादुई शब्द है जो सांसो को संजीवनी दे देते है आशा है आप मेरी इस छोटी सी मगर दिल को छू लेने वाली बात का मतलब समझ गए होंगे?
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा" पचौरी "
Rakesh rakesh
20-Nov-2023 12:49 AM
कम शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया सर
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Sarita Shrivastava "Shri"
18-Nov-2023 03:35 PM
वाह! बेहतरीन सुन्दर विचार प्रस्तुति👌👌🌹🌹
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Gunjan Kamal
18-Nov-2023 02:58 PM
बहुत खूब 👏🏻👌
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